Wednesday, October 24, 2007

प्रेमरस खुजली

क्या किसी प्रेम में डूबे व्यक्ति को देखकर आपको खुजली की दवा का विज्ञापन याद आ सकता है?
जी हां, बिल्कुल याद आ सकता है- 'खुजली करने वाले, पी-टेक्स लगा ले/पी-टेक्स लगाके तु अपनी...दाद-खाज-खुजली मिटाले। ओए, ओए...।' खासकर तब, जब प्रेम करने वाला रोज सुबह ही सुबह आपको दफ्तर के दरवाजे पर घेर ले और किसी अंतहीन आलाप की तरह अपने प्रेम का किस्सा शुरू कर दे। एक ऐसे प्रेम का किस्सा, जो है भी या नहीं, इसे लेकर वह खुद दुविधा में नाक तक डूबा हुआ हो।

'आज उसने मेरे सामने उसकी तरफ देखकर ऐसा-ऐसा कहा। मैं जानता हूं कि यह बात वह मेरे लिए कह रही थी, उससे कहने का तो सिरफ बहाना कर रही थी।'
'आपको कैसे पता कि आपके लिए कह रही थी।'
'ओए, मुझे नहीं पता होगा तो क्या तुझे पता होगा?'
'लेकिन आपके लिए कह रही हो तो भी, इसमें ऐसी क्या बात है, जो इतने उतावले हुए जा रहे हैं?'
'है न! बात तो है, बस तेरी सम्झ में नहीं आ रही है...'
'तो बता क्यों रहे हैं यार?'
'अब बताने की बात है तो बता रहे हैं...'''

या फिर,
'देख, देख...कल यहीं बैठा मैं नीले रंग की तरीफ कर रहा था और वो नीला सूट पहनकर आ गई।'
'लेकिन वह सूट नीला नहीं, बैंगनी है।'
'है तो नीले का ही कोई शेड। यकीन मान, मैं तरीफ न करता तो कोई और कलर पहनकर आई होती।'
'अरे, बैंगनी उसका फेवरिट कलर है। रोज तो वही पहनकर आती है...'
'और तू देखता है रोज, ऐं?'
'नहीं नहीं...ऐसा नहीं है...'
'....'
'चलिए, आ गई पहन के, अब क्या?'
'अब क्या? अब तो देखते जाओ बस...'

एक दिन,
'यार ये दुनिया बड़ी कुत्ती चीज है...'
'क्यों? क्या हुआ?'
'अबे छड यार, बस ये है ही ऐसी।'
'चलिए, छोड़ दिया।'
'........'
'........'
'अब लंच के टाइम गया था कैंटीन। तभी वो आ गई। अरे उसके साथ टहलती रहती है जो।'
'किसके साथ? बैंगनी वाली के?'
'और क्या। बैठा ही था, तबतक सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई। करने लगी गल-बात। मैं कया, क्या लेंगी, तो चिकन बोल बैठी। बैरे को बुलाया ही था कि चले आए साले पांच-सात। बैठ गए...हमारा भी चिकन, हमारा भी चिकन। मोबाइल के बिल के लिए पैसे लाया था, पूरा पर्स ही खाली हो गया...'
'ओह...ओह, चलिए, प्यार में ऐसा भी होता है।'
'प्यार न घंटा। प्यार का साला कुछ पता नहीं, मुफतखोर मजे कर गए...'

'आज जानता है क्या हुआ?'
'मुझे नहीं जानना।'
'अरे सुन तो सही।'
'मुझे नहीं सुनना।'
....
'अरे बिल्कुल अलग बात है।'
'आप लोग शादी करने जा रहे हैं?'
'नहीं, वो शादी करने जा रही है यार।'
'तो, क्या शादी में बैंड बजाने का इरादा है?'
....
'यार, मैं उसको जानता हूं...उस लौंडे को। उसकी लाइफ बर्बाद कर देगा...बेच डालेगा कहीं ले जाकर...'
....
'उस दिन चिकन उसने भी खाया था?'
'वही तो लेकर आया था सबको...हर वक्त खी-खी करता रहता है साला...
....
'और बात भी मेरे सामने ऐसे करते थे दोनों, जैसे ममूली जान-पहचान हो सिरफ...ओह, ये साली दुनिया...कितने कमीने हो गए हैं लोग, ओह...'

क्या शुरू में खुजली के मलहम वाले विज्ञापन की याद दिलाकर मैंने कुछ गलत किया?

1 comment:

Udan Tashtari said...

अरे नहीं, अच्छा ही किया जो शुरु में ही याद दिला दी. :) वरना बाद में तो याद आ ही जाती.