Tuesday, July 3, 2007

शादी वाली फिल्में

खुदा को हाजिर-नाजिर मानकर की गई शादियां
जल्द ही खुदा को प्यारी होती हैं
और वे, जो की जाती हैं अग्नि को साक्षी मानकर,
कभी लाल चूनर को समिधा बनाती हुई
तो कभी इसके बगैर ही
सत्वर गति से होती हैं अग्नि को समर्पित।

इसके अलावा भी होती हैं शादियां
गवाह जिनका दो दिलों के सिवाय
कोई और नहीं होता
मगर इससे भी सुनिश्चित नहीं होता
उनका दीर्घजीवन
एक कृपालु अमूर्तन की जगह वहां भी
बहुत जल्द एक शैतान आ विराजता है।

लालच, कुंठा और ईर्ष्या के महासागर में
एक-दूसरे से टकराती तैरती हैं शादियां
पर्त दर पर्त खालीपन के भंवर में
नाचते हुए घूमते हैं पर्त दर पर्त खालीपन
फिर भी मजा यह कि
शादी के वीडियो जैसी बंबइया फिल्में
हर बार हिट ही हुई जाती हैं।

क्यों न हों- कहते हैं गुनीजन-
यही है हमारा सामूहिक अवचेतन, क्योंकि
सबकुछ के बावजूद शादी ही तो है
मानव-सृष्टि की इकाई रचने का
अकेला वैध उपाय-
बाकी जो कुछ भी है,
लड़कपन का खेल है।

सत्य वचन
पर कुछ-कुछ वैसा ही, जैसे-
एटमबम ही है
विश्व को सर्वनाश से बचाने का
अकेला वैध उपाय
बाकी जो कुछ भी है,
कमजोरों की बकवास है।

3 comments:

हरिमोहन सिंह said...

बढिया शब्‍द है पर कुछ

सुजाता said...

बहुत सही विचार व्यक्त किये है आपने ।शादी -हिट होने का वाकऎ कोऎ फार्मूला नही है पर फिल्म हिट होने के लिए शादी एक हिट फार्मूला है ।:)शादी नामक सन्स्था पर प्रश्न चिह्न लगने आरम्भ हो चुके है ।

अभय तिवारी said...

अच्छी कविता इतनी तो है कि कहा जाय कि अच्छा लिखा चन्दू भाई.. पर आप्से ज़रा ज़्यादा की उम्मीद रहती है.. इस विषय पर और सम्भावनाएं हैं.. आप से आग्रह है कि इस कविता को आप के साथ कुछ दिन और रहने दें.. फिर शायद कमाल की हो जाय..