tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post1573957546915191851..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: हो ही जाय जात पर बातचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-32703881131595951102008-04-17T01:33:00.000-07:002008-04-17T01:33:00.000-07:00बेहद संतुलित विश्लेषण .बेहद संतुलित विश्लेषण .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-13810666948414992182008-04-15T04:36:00.000-07:002008-04-15T04:36:00.000-07:00अंशुमाली जी, मीडिया ढांचे की बीमारियां अनेक हैं, ज...अंशुमाली जी, मीडिया ढांचे की बीमारियां अनेक हैं, जिनमें जातिवाद तुलनात्मक रूप से बहुत छोटी चीज है। कभी इस विषय पर बात जरूर होगी, लेकिन अभी इस बारे में अपनी समझ को मैं पर्याप्त नहीं समझता। मेरे ख्याल से मीडिया के लिए यह एक ट्रांजिशन फेज है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूज्ड स्थिति में है। मेरे दिमाग में टुकड़े-टुकड़े कुछ बातें हैं। कड़ियां जुड़ने लगें तभी इस विषय में कुछ कहना उचित रहेगा।चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-15676265086821667132008-04-13T10:47:00.000-07:002008-04-13T10:47:00.000-07:00बढ़िया विश्लेषण चंदू जी।बढ़िया विश्लेषण चंदू जी।दीपा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/12130328147834660274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-72745498568240714562008-04-13T07:28:00.000-07:002008-04-13T07:28:00.000-07:00चंद्रभूषणजी, जरा इस पर भी तो कुछ बोलिए। इंतजार रहे...चंद्रभूषणजी, जरा इस पर भी तो कुछ बोलिए। इंतजार रहेगा।<BR/>-----------------------------<BR/>जाति पर चल रही इसी बहस में मैंने रवीश से एक प्रश्न किया था कि मीडिया में व्याप्त जातिवाद पर उनका क्या कहना है? इसका उत्तर अभी तक मुझको रवीश से नहीं मिल सका है। शायद मिलेगा भी नहीं। रवीश इस मसले पर मुंह इसलिए नहीं खोलेगें क्योंकि इससे उनके आका नाराज हो सकते हैं। कहीं लेने के देने न पड़ जाएं। <BR/>मीडिया में जातिवाद भी है और सामंतवाद भी। इस जातिवाद और सामंतवाद की चिरौरी में वो लोग भी शामिल हैं जो खुद को बड़ा प्रगतिशील कहते-बताते हैं। समाजसुधारक का चोला पहनकर मीडिया हम पर यह जतलाने की कोशिश करता है कि हम ही सत्य और पाक-साफ हैं बाकी सब चुतिए और गधे हैं। मीडिया जाति और लिंग के मसले पर दूसरों पर आरोप लगाते हुए हमें बहुत जागरूक लगता है मगर अंदर की हकीकत कुछ और ही है। रवीशजी आप ही बता दीजिए। <BR/>मेरा एक सवाल और है आखिर मीडिया में गोरे और चिकने चेहरों की बपौती ही क्यों है? खासकर लड़कियों के मामले में मीडिया और मीडियाकर्मी दोनों ही बेहद रंगीले रहते हैं।<BR/>रही बात इस सर्वे की तो सब बकबास है। दुनिया को चुतिया बनाने के लिए कुछ तो चाहिए, ये ही सही। जिन्होंने ये सर्वे किया है पहले वो यह तय करें कि वो खुद कहां खड़े हैं? बिडंबना देखिए मीडिया के बीच पसरे जातिवाद पर सर्वे करने का वक्त इन महान आत्माओं के पास है मगर किसानों के मरने, गांव के बिखरने, खेती के सिमटने जैसे गंभीर मुद्दों पर सर्वे करने का समय इनके पास नहीं है। दरअसल ये गंभीर मुद्दे इन्हें न पैसा दिलवाएंगें न शौहरत का मजा।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-80754175202573342062008-04-12T06:14:00.000-07:002008-04-12T06:14:00.000-07:00आज़ादी के बाद दलित उद्धार के नाम पर बहुत कुछ किया ग...आज़ादी के बाद दलित उद्धार के नाम पर बहुत कुछ किया गया. लेकिन यह सब कुछ सब दलितों तक नहीं पहुँचा. कुछ दलित नेताओं ने इसे बन्दर बाँट बना दिया. लालू, पासवान, मायावती और ऐसे अनेक नेता केवल अपना उद्धार करने में ही लगे रहे, और आज भी कर रहे हैं. मायावती तो कुछ आगे ही निकल गईं. जिनका उद्धार करने की कसम खाई जाती थीं उन्हीं से उपहार ले लेकर अपनी तिजोरियाँ भर लीं. "सत्ता में भागीदारी" के नारे लगवा कर अपनी सत्ता के रास्ते आसान बना लिए और आम दलित वहीं का वहीं रह गया. मेरे विचार मैं, आज़ादी के बाद दलितों के सब से बड़े शत्रु उन के अपने नेता हैं. जब तक इस सच्चाई को माना नहीं जाता दलित बस केवल इस्तेमाल किए जाते रहेंगे.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10037139497461799634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-61367444262132458192008-04-12T01:14:00.000-07:002008-04-12T01:14:00.000-07:00aap sae email per bat karna chhtee hun agar sahii ...aap sae email per bat karna chhtee hun <BR/>agar sahii samjhey to apnaa id is mail per bhej dae<BR/>rachnasingh@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-91074544708782751792008-04-11T06:51:00.000-07:002008-04-11T06:51:00.000-07:00http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/chandrab...http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/<BR/>chandrabushan ji aap kii koi raay is chittah per nahin milii <BR/>aap kaa email kahin uplabdh nahin tha so kamen tmae bhej rahee hunAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-13251691012884302182008-04-08T08:16:00.000-07:002008-04-08T08:16:00.000-07:00Very impressive Chandrabhushan jee. This type of v...Very impressive Chandrabhushan jee. This type of view anyone gets when he/she goes above jaat paat and sees from top. It will be a good lesson for all those who are writing on jaat-paat these days.Sarveshhttps://www.blogger.com/profile/15736299921472395047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-65706048502005542822008-04-08T01:15:00.000-07:002008-04-08T01:15:00.000-07:00मनीष जी, हकीकत यही है, लेकिन सत्ता की दुरभिसंधियों...मनीष जी, हकीकत यही है, लेकिन सत्ता की दुरभिसंधियों के बावजूद लोग बचे रह जाते हैं, उनकी मुश्किलें भी बची रह जाती हैं। गेटे का सहारा लें तो 'विचार धूसर पड़ जाते हैं, जीवन का वृक्ष फिर भी हरा रहता है।' गलत को गलत और सही को सही कहने वाले कुछ लोग बचे रहे तो इस जीवन-वृक्ष से नए विचारों, नए आंदोलनों की कोंपलें फूटकर रहेंगी- आज नहीं तो कल!चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-70488433894998942212008-04-07T12:44:00.000-07:002008-04-07T12:44:00.000-07:00बहुत सधा - जोर दे कर पढ़ा - "समाज के कमजोर तबके- दल...बहुत सधा - जोर दे कर पढ़ा - "समाज के कमजोर तबके- दलित खेत मजदूर, जमीन और पूंजी दोनों से वंचित अति पिछड़े, हर तरफ से लात खाकर आंधी में पत्ते की तरह उड़ रहे गरीब सवर्ण, बिला वजह मार दिए जाने लूट लिए जाने से डरे हुए किसी तरह अपना अस्तित्व बचाए रखने में जुटे मुसलमान- इन्हें आपकी मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है।" इसमें पूरा मसौदा भरा है - अन्त्योदय - या जो भी नाम दें - की संभावना जब है अगर यही तबका - राजा और रानी, और नवाब, खैरख्वाह मालिकान को थोड़ा किनारे करे - एकजुट हो ऐसे नेताओं को लाये जो उठ कर भी बने रह सकें - अगले चुनाव की जुगत में सरपट विरोधाभास न बन जाएँ - ऐसा हो सकता है क्या ? इन्हें अपनी मदद की भी जरूरत है - पुराने सारे ऐसे बने काडर - लाल, हरे, नीले अंततः नहीं चले - और अब ? - the cynic in me says we are back to the fabian myth - power has long won over purpose and principles.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-54059765007373526552008-04-07T04:11:00.000-07:002008-04-07T04:11:00.000-07:00aapne uchit likha hai, aisa nhi hai ki baki log is...aapne uchit likha hai, aisa nhi hai ki baki log is tthy se aprchit honge lekin jhuthe, mkkar aur glij logon ke bkvad ka aakhir koi kya krega...ve thothe gal bjate rhenge...jb jhuth apne hjaro munhon se hunva huvan kre to schi aavaj, sachhi bat nkkarkhane ki tooti bnkr hi rh jati hai chandoo bhaiya...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12313797805658263500noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-11494677756201765782008-04-06T04:13:00.000-07:002008-04-06T04:13:00.000-07:00जाति को लेकर एक क्लीअर पिक्चर देने की कोशिश की है ...जाति को लेकर एक क्लीअर पिक्चर देने की कोशिश की है आपने. सच में जेनुअनेटी की भारी कमी है. बकवादी लोग ज्यादा भरे हैं<BR/>Rajesh RoshanRajesh Roshanhttps://www.blogger.com/profile/14363549887899886585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-29198532263426369702008-04-05T22:24:00.000-07:002008-04-05T22:24:00.000-07:00जाति के मामले में बौद्धिकों द्वारा किन तीन मसलों प...जाति के मामले में बौद्धिकों द्वारा किन तीन मसलों पर भ्रम पैदा होता है यह बखूबी बता दिया- शिवपति से लगायत आरक्षण तक । सामाजिक नीति का लक्ष्य स्पष्ट न होने पर यह दिक्कतें आती हैं । वैसे में स्वार्थ के अनुरूप आंशिक नीति पर जोर दिया जाता है , समग्र नीति को भुला दिया जाता है ।सामाजिक नीति का लक्ष्य जाति-प्रथा का विनाश होना चाहिए ।सवर्ण-अवर्ण विवाह करने वाले जोड़ों का सामाजिक सम्मान कौन समूह कर रहे हैं ?<BR/>'आरक्षण साध्य नहीं साधन है' - आम तौर पर यह साफ़ नहीं होता।<BR/>१९३० से काफ़ी पहले जब कार्नवालिस द्वारा अंग्रेजों का प्रशासनिक ढाँचा स्थापित हुआ तब देश के कई इलाकों में पहली बार सवर्ण इस तंत्र का हिस्सा बनने पहुँचे । उसके पहले इन इलाकों में सवर्ण नहीं हुआ करते थे।<BR/>अति-पिछड़ों और दलितों का नेतृत्व सिर्फ़ उन्हीं राजनैतिक धाराओं से उभरा जहाँ दल की नीचे से उपर तक की कमीटियों में विशेष अवसर उसूलन दिया जाता था ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-82053241708240430192008-04-05T19:54:00.000-07:002008-04-05T19:54:00.000-07:00हमे अपने विचार और आचरण से जेनुयिन रहना चाहिए . ......हमे अपने विचार और आचरण से जेनुयिन रहना चाहिए . ...विचारोत्तेजक.....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-55190281095254308692008-04-05T16:13:00.000-07:002008-04-05T16:13:00.000-07:00बल्ले बल्ले चंदू भाई....बल्ले बल्ले चंदू भाई....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-1527063281841451172008-04-05T11:38:00.000-07:002008-04-05T11:38:00.000-07:00बिल्कुल सही और संतुलित बात.बिल्कुल सही और संतुलित बात.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-90344004009290240002008-04-05T08:00:00.000-07:002008-04-05T08:00:00.000-07:00बहुत सही, चंदू.. ग्रेट.. उम्मीद है इसे ज़्यादा से...बहुत सही, चंदू.. ग्रेट.. उम्मीद है इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोग पढ़ें!azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-23495291259356412752008-04-05T07:35:00.000-07:002008-04-05T07:35:00.000-07:00सोलह आने खरी बात। जाति के मसले की हकीकत को समझने क...सोलह आने खरी बात। जाति के मसले की हकीकत को समझने का नया आधार मिला।<BR/>लेकिन क्या कीजिएगा, कुछ बकवादियों को तो हुआं-हुआं ही करना है। उन्हें किसी को मसले को समझना ही नहीं है, बस हल्ला मचाना है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com