tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post6792842390122680141..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: हंसी क्यों इतनी मंहगीचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-76986995396220222082007-09-12T23:31:00.000-07:002007-09-12T23:31:00.000-07:00आपके पहलू में आकर हंस दिए.......आपके पहलू में आकर हंस दिए.......इन्दुhttps://www.blogger.com/profile/15370498837448588351noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-87218220804389770042007-09-12T23:25:00.000-07:002007-09-12T23:25:00.000-07:00क्या ख़ूब लिखा है.हंसी का मनोविज्ञान, समाजशास्त्र ...क्या ख़ूब लिखा है.हंसी का मनोविज्ञान, समाजशास्त्र भी अजीब है .भारतीय समाज में पहले लड़कियों के हंसने पर उन्हें फटकार पड़ती थी इसी कारण उनकी हंसी दबी हुई निकलती थी, जो खिलखिलाहट<BR/>के रूप में सुनायी देती है .मर्द खुल कर ठहाके लगते है .आप कभी किसी पुराने समय की महिला की हंसी को याद कीजिये .हँसते समय वे किस तरह साड़ी के पल्लू से अपना मुँह छिपा लेती थी .हमारी एक काकी है अपने ज़माने में सुन्दर मानी जाती थी पर उनके दांत बाहर की तरफ निकले हुए थे .वो जब भी हंसती थी तो साड़ी के पल्लू या हथेलियों में अपना मुहँ छिपा कर हंसती थी.आज सत्तर साल की उम्र में भी जब पोपली हो चुकी हैं तो भी वैसे ही हंसती है एक बार मैने उन से ऐसे हंसने का कारण पूछा तो पहले तो वह अपने उसी अंदाज में हंसी फिर संजीदा हो कर बोलीं - का बतायें बिटिया दांत बाहर को निकले थे .इसलिये हमारी अम्मा ने सुसराल जाते समय मुझे सिखा कर भेजा था कि दांत बाहर निकाल कर सबके सामने मत हँसना .ज्यादा हंसी आये तो मुँह ढँक कर हँसना .दांत चले गए पर आदत नाही गई .आज जब सिनेमा हाल में औरत को उँची आवाज में खिलखिलाते या ठहाके लगाते सुनती हूँ तो अच्छा लगता है हंसी के बदलते समाज शास्त्र को देखना .tanivihttps://www.blogger.com/profile/08250762558079034162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-45119226612846550522007-09-11T06:20:00.000-07:002007-09-11T06:20:00.000-07:00हंसी के समाजशास्त्र से लेकर हंसी के मनोविज्ञान तक ...हंसी के समाजशास्त्र से लेकर हंसी के मनोविज्ञान तक की अच्छी तलाश है। कुछ सोचने के बिंदु मिल जाते हैं।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com