tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post6138670070719121693..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: मार्क्सवादी, माओवादी और मालेवादीचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-58916016857039317212009-07-02T09:20:38.501-07:002009-07-02T09:20:38.501-07:00दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और आप अब भी सीपीआई एम...दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और आप अब भी सीपीआई एमएल के संशोधनवाद में अटके हैं।संगम पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03907266954456152692noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-91850615162781528502009-06-27T05:21:41.249-07:002009-06-27T05:21:41.249-07:00किशोर कुमार ने पता नहीं गुलशन नन्दा और आनन्द बक्...किशोर कुमार ने पता नहीं गुलशन नन्दा और आनन्द बक्षी से पूछकर किस संदर्भ में सीढ़ियों से उतरते हुए गाया था, मैं सीढ़ियों पर चढ़ते हुए गाना चाहता हूं- <i>दुनिया ओ दुनिया, तेरा जवाब क्यों नहीं?</i>azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-33812823635214461422009-06-25T22:36:23.333-07:002009-06-25T22:36:23.333-07:00Chandrabhushan ki chinta sahi hi hai lekin sumant ...Chandrabhushan ki chinta sahi hi hai lekin sumant ka gussa jane kya hai. desi adarsh jaise jumle purani bakwas hai. desi adarsh aur prateek ki baat karne walon ke hashr bhi dekhe ja chuke hainEk ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-69883200044830165032009-06-22T12:08:07.441-07:002009-06-22T12:08:07.441-07:00इस आलेख का मंत्व्य क्या है? क्रांति के नाम पर मार्...इस आलेख का मंत्व्य क्या है? क्रांति के नाम पर मार्क्स सम्प्रदाय की सता या आम आदमी की बदहाली दूर करना? कम्युनिज्म के १०० वर्षों के इतिहास में कितनी खूँरेजी हो चुकी है? आखिर यह कब समझेगें कि इस दर्शन में अन्तर्निहित विरोधाभास हैं? पूंजी पर नजर गड़ाये रखते हुए गरीब, मजदूर, किसान की बात करना ही बेमानी है। <br /><br />आम जनता इतनी वैचारिक चाशनी की न तो अभ्यस्त है और न ही उसका मार्क्स परिवार के दर्जनों झण्ड़ों से कुछ लेना-देना है। उसका तो सरोकार इतना है कि जीवन कैसे सरल हो और सामान्य मानुषी तरीकों से वे कैसे जी पायें। मार्क्स सम्प्रदाय की जबानी लपालपी से पिछले ३०-३५ सालों में देश और जनता का कोई भला नहीं हुआ है। बल्कि उन्हें आम जीवनधार से काट कर अपनें हथियार के रूप में इस्तेमाल कर उनकी जिन्दगी को नरक बना दिया गया है<br /><br />सच बात तो यह है कि साम्यवादी जब तक अपनीं जड़ें इस देश में यहाँ की जुबान, यहाँ के सरोकारों से नहीं जोड़ेगे तब तक कुछ नहीं होंने वाला। जिस विचार धारा के लोगों के पास मार्क्स,लेनिन,माओ फिड़ेल कास्ट्रों और चे गुअएरा के अलावा अपना कोई देशी आदर्श न हो, कोई देशी नेता न हो, उस पर देश की जनता कैसे विश्वास कर सकती है? इस्लाम के पैन इस्लामिजम के अलावा और वह भी दूसरे देशो को हजम करनें के उद्देश्य के, क्या कोई ऎसी विचारधारा स्थायी हो पायी है जो अन्तर्राष्ट्रीयतावाद के नाम पर सफल हुई हो? कब तक मल्टीनेशनल विदेशी कम्पनी के एजेन्ट्स की तरह काम करते रहेंगे? आज माओवादियों पर प्रतिबन्ध लगानें के मसले पर टाल मटोल करनें से मुखौटा भी उतर गया है, और यह साफ हो गया है कि इन आतंकी गतिविधियों का असली मकसद क्या है।सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’https://www.blogger.com/profile/14324507646856271888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-80082621970735427872009-06-22T08:12:49.493-07:002009-06-22T08:12:49.493-07:00संतुलित आलेख। जब जनतंत्र दिखावटी न्याय तक नहीं दे ...संतुलित आलेख। जब जनतंत्र दिखावटी न्याय तक नहीं दे पा रहा है तो यह तो होना ही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com