tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post5630714854891221095..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: भीड़ में दुःस्वप्नचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-37489283079370075142007-07-09T17:46:00.000-07:002007-07-09T17:46:00.000-07:00अच्छी, सोचने को मजबूर कर देने वाली रचना।अच्छी, सोचने को मजबूर कर देने वाली रचना।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-34826307581611411272007-07-09T09:28:00.000-07:002007-07-09T09:28:00.000-07:00सामाजिक मानसिकता को दर्शाती बेहद मार्मिक रचना. बधा...सामाजिक मानसिकता को दर्शाती बेहद मार्मिक रचना. बधाई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-23027353800406783742007-07-09T06:50:00.000-07:002007-07-09T06:50:00.000-07:00सुन्दर रचना,सुन्दर भाव है।बधाई\इतने सब के बाद भीको...सुन्दर रचना,सुन्दर भाव है।बधाई\<BR/><BR/><BR/>इतने सब के बाद भी<BR/>कोई भय तुममें बाकी हैबाकी है कहीं गहरा यह बोध कि यह अंत नहीं है अंधेरा गहरा रहा हैऔर तुम्हें कहीं जाना हैतेज-तेज तुम रास्ता पार कर रही होपीछे सभी तेज-तेज हंस रहे हैं<BR/>क्या इस सपने का कोई अंत है- उचटी हुई नींद में तुम मुझसे पूछती होजवाब कुछ नहीं सूझता....बेवजह हंसता हूं, सो जाता हूं।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.com