tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post4329723483547571958..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: शबे फुरकत बहुत घबरा रहा हूँ....चंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-70552740957149148572007-06-05T01:02:00.000-07:002007-06-05T01:02:00.000-07:00आपको यथोचित अभिवादन मेरा । आपके ई-मेल की जानकारी न...आपको यथोचित अभिवादन मेरा । आपके ई-मेल की जानकारी न होने के कारण मैं यहीं से अपनी बात पहुँचाना चाहता हूँ । कृपया अन्यथा नहीं लेंगे । जो आपकी प्रतिक्रिया पर ही है, और जिसके लिए मैं आपका आभार भी जताना चाहता हूँ -<BR/><BR/>आपने लिखा है- <BR/><BR/>जब इतना सारा गड़बड़-सड़बड़ है नक्सलवाद में, तो यह इतनी तेजी से फैल कैसे रहा है? इस विषय में इतना लंबा वैचारिक लेख लिखने से अच्छा होता, आप थोड़ा समय निकालकर नक्सली जनाधार के बीच जाते, वहां के लोगों से बातचीत करते और उनसे इस आंदोलन के साथ जुड़ने की वजह पूछते। जो आंदोलन हर तरह के शासकीय औऱ वैचारिक विरोध के बावजूद जमीन पर चालीस साल जमा रहे, उसकी जड़ में कोई बात तो ऐसी जरूर होगी, जो देश के ज्यादातर पढ़े-लिखे लोगों की समझ में नहीं आती। वही बात जब आपकी समझ में आ जाएगी तो आप नक्सलवाद के बारे में लंबे-लंबे प्रलाप करने के बजाय उसके साथ संवाद के सूत्र तलाशने में अपनी ऊर्जा लगाने लगेंगे। <BR/><BR/>-आपका कथन अपनी जगह सही हो सकता है । क्योंकि हर किसी को अपनी बात ही सही लगती है दुनिया की नहीं । और यहाँ आप मुझसे असहमत हो सकते हैं और मैं आपसे । पर मेरा निवेदन सिर्फ इतना ही है कि -<BR/><BR/>1.नक्सलवाद सिर्फ इसलिए नहीं फैल नहीं रही है क्योंकि यह अच्छी है । अंतिम सर्वश्रेष्ठ है । <BR/><BR/>2. मै जहाँ रहता हूँ वह पूरा क्षेत्र ही नक्सलवादी भूगोल के वृत में है । रोज नक्सलवाद के चरम घटनाओं और पीडितों को देखते रहे हैं हम । मेरे पास भी कई बार नक्सलियों की सामग्री व्यक्तिगत पते पर आती रही हैं । आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि चाहे सरगुजा हो या बस्तर हमने लोगों से इस वाद से जुड़ने और आदी होने की बात की है । सिक्के के दो पहलू होते हैं । और मैं उस पहलू से असहमत नहीं हूँ जिसमें वे शोषण से त्रस्त होकर और उपायहीन होकर इधर कूच कर जाते हैं । पर यह मार्ग उन्हें मौत की ओर भी ले जाता है । और जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं है मेरी दृष्टि में । नक्सली इसे चाहे जो कहें । कहते रहें । और इसका हक उन्होने ले ही लिया है । <BR/><BR/>3 चलिए आप ही (और आप भी) वह कारण बता दीजिए जो पढ़े लिखे लोगों को समझ नहीं आती । जैसा कि आपका कहना है । <BR/><BR/>4. आपकी दृष्टि में जो प्रलाप है वही मेरा संवाद है । मानें या न मानें । वही शायद एक दिन गरीब, निहत्थो, आदिवासियों का हक दिला कर रहेगा । प्रतीक्षा करते हैं मिलकर दोनों ही । अंततः सफलता नक्सलवाद को मिलती है या संवाद को । आपका नाराज होना वाजिब है क्योंकि आप स्वयं को नक्सवादी कहते हैं । घोषित करते हैं । पर यह भी कम हिम्मत नहीं है । मैं जीवन में पहली बार आप जैसा दबंग व्यक्ति देख रहा हूँ । और इस रूप में मैं आपकी अभिव्यक्ति की प्रशंसा भी करता हूँ । आप चाहें तो आपकी दोस्ती को भी स्वीकारता हूँ । यदि आप मुझे अपने तर्कों से हरा सकें तो मै आपका ऋणी भी रहूँगा । <BR/><BR/>5. शायद इसी में और आपके साथ चर्चा करते-करते मैं संवाद का सूत्र भी तलाश सकूं । <BR/><BR/>6. नक्सली बात करें । गरीबों के लिए बात करें । शोषितों के लिए बात करें । स्वयं संवाद करें । औरों के लिए लड़ें । अपने लिए नहीं । आदिवासियों के लिए लड़ें । आदिवासियों को मौत के घाट न उतारे । पूरे बस्तर को अंधकार में तब्दील न कर दें । जैसा कि पिछले सात दिनों से वहाँ हो रहा है । यह किसके विरूद्ध है । क्या इससे वे गरीब लोग भी परेशान नहीं हो रहे हैं जो न आदिवासी है और न ही सरकारी लोग । क्या इससे वे प्रभावित नहीं हो रहे है जिनके लिए लड़ने-मरने का नक्सलवाद दावा करती है । यह मात्र आपके लिए सूचना मात्र है । आदिवासियों के खिलाफ हजारों कहानियाँ है जिनके कहानीकार शायद ऐसे ही नक्सली हैं । विरोध सिर्फ इसी बात का है । शोषण का विरोध करने वालों को किसने रोका है । पर मारकाट मचाकर नहीं । <BR/><BR/>मित्रवर आपके विचारों से मैं नयी उर्जी पा रहा हूँ । असहमति के बावजूद भी आपसे निंरतर बातचीत करते रहना चाहता हूँ क्योंकि मैं स्वयं शोषण का गंभीर रूप से शिकार हूँ इन दिनों । पर अपने स्तर पर लड़ रहा हूँ । <BR/><BR/>आशा है आपका वैचारिक उर्जा मुझे साथ देगी भविष्य में भी ।जयप्रकाश मानसhttps://www.blogger.com/profile/16792869521782040232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-16354465733125724452007-04-24T08:40:00.000-07:002007-04-24T08:40:00.000-07:00आपको यहां पाकर अच्छा लगा. जो बात मैंने भी महसूस की...आपको यहां पाकर अच्छा लगा. जो बात मैंने भी महसूस की, उसे आपने जुबां दे दी.Bhupenhttps://www.blogger.com/profile/05878017724167078478noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-29046803752663301692007-04-23T23:55:00.000-07:002007-04-23T23:55:00.000-07:00अच्छा लिखा !अच्छा लिखा !Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-36284446527778696072007-04-23T22:43:00.000-07:002007-04-23T22:43:00.000-07:00सुन्दर है, लिखते रहिये.. जब भी फ़ुरसत मिलेसुन्दर है, लिखते रहिये.. जब भी फ़ुरसत मिलेMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-82765951557192008542007-04-23T19:18:00.000-07:002007-04-23T19:18:00.000-07:00पहले ही की तरह ईमानदार..पहले ही की तरह ईमानदार..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-88963419583375602012007-04-23T19:15:00.000-07:002007-04-23T19:15:00.000-07:00पहले नमस्ते..कविता तो बाद में भी पढ़ लूंगा..पहले नमस्ते..कविता तो बाद में भी पढ़ लूंगा..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com