tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post3782633145381525993..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: क्या चमचागिरी हमारी सभ्यता का जेनेटिक तत्व है?चंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-35140786996930691942008-01-29T23:15:00.000-08:002008-01-29T23:15:00.000-08:00मुझे तो लगता था कि यह चमचागिरी कुछ ही संस्थानों की...मुझे तो लगता था कि यह चमचागिरी कुछ ही संस्थानों की बीमारी है..लेकिन आपने सच को सामने कर दिया...मैं अनामदास जी से सहमत हुआ जाता हूँ.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-26541071425238843542008-01-29T18:16:00.000-08:002008-01-29T18:16:00.000-08:00हम गुलामी का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। ये सिर्फ हिं...हम गुलामी का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। ये सिर्फ हिंदी-अंग्रेजी पत्रकारिता तक ही नहीं है। कहीं भी और कभी भी -- एक नजर डालिए<BR/><BR/>http://batangad.blogspot.com/2007/05/blog-post_27.htmlBatangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-48293975306146265742008-01-29T13:46:00.000-08:002008-01-29T13:46:00.000-08:00हो सकता है मैं पूरी तरह ग़लत हूँ और बहक कर बहुत बड...हो सकता है मैं पूरी तरह ग़लत हूँ और बहक कर बहुत बड़ी बात कर रहा हूँ लेकिन कई बार लगता है कि चापलूसी टिपिकल हिंदू चीज़ है. शास्त्रों में दो देवताओं, दो ऋषियों का संवाद पढ़िए, आप महान हैं, नहीं आप महानतर हैं, नहीं आप तो महानतम हैं..काम की बात अंत में होती है. यह बीमारी दिल्ली में ज्यादा दिखती है क्योंकि मलाई यहाँ ज्यादा है लेकिन वैसे भी हीं हीं खीं, सर जी तुस्सी ग्रेट हो कल्चर हमारे यहाँ उतना ही गहरा है जितना हमारा जातिवाद वगैरह...बहुत कम लोग हैं जो इसका प्रतिकार करते हैं...इसी असली परीक्षा तब होती है जब हम-आप सचमुच भाईसाहब बन जाते हैं...दमघोंटू है सब कुछ, इसमें क्या शक हो सकता है...अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-61311142231831437382008-01-29T07:09:00.000-08:002008-01-29T07:09:00.000-08:00विश्व्विधालयो और जाने माने वैग्यनिक सन्धानो का भी ...विश्व्विधालयो और जाने माने वैग्यनिक सन्धानो का भी यही हाल है. उपर से लड्कियो के लिये और ज्यादा मुशिबत. आप बहुत लायक य मेहनती है, तो वो मेहनत भी "भाई-साहेब" के चमचो के हिस्से मे आये. सर्कस के बन्दर बन जायो, और नये बन्दर तैयार करो? नौकरी के इंटरवीव मे जाओ, तो सवाल है कि लड्कियो को तो घर चलाना नही है, फिर लडको की नौकरी क्यो छीन रही है? <BR/><BR/> बहुत नालायक है, तो अच्छी ग्रहणी बन कर दफ्तर मे सब के लिये कुछ खाने-पीने का सामान बना कर ले जाओ, अमुक को भाई, फलाने को प्रेमी, और सारी रिस्तेदारिया फैला दो. <BR/>बायोलोजी के किसी भी विभाग मे लडको के मुकबिले लड्किया दोगुनी है, पर किसी भी संस्थान मे शायद ही एक 20% हो. <BR/><BR/>अपने आदर्श वाद और देश्भक्ती को ताक पर रख कर मुझे हिन्दुस्तान छोडना पडा. थेसिस खत्म करते हुये मुझे धमकी भी मिली थी " लड्कियो को इतना गरूर अच्छा नही, थेसिस तो हो जायेगी, पर आगे सडक मिलेगी...(नौकरी नही)"<BR/><BR/>खैर अपनी गली मे गुल्मोहर की छाव न हो, तो गैर की गली मे उसकी तलाश करना ही मुझे बेहतर लगास्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-76440798836648063072008-01-29T06:40:00.000-08:002008-01-29T06:40:00.000-08:00NDTV India से इस्तीफा देते वक्त मैंने आखिरी मेल मे...NDTV India से इस्तीफा देते वक्त मैंने आखिरी मेल में लिखा था कि, "इस अहसास के साथ यहां से जा रहा हूं कि feudal remnants अब भी हमारे समाज में हावी हैं और genuine democracy के लिए अभी बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।"<BR/>आप बता रहे है कि अंग्रेजी में भी यह रोग है। पहले तो मुझे लगता था कि यह मूलत: हिंदी पत्रकारिता की बीमारी है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com