tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post330764967745689082..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: कैसे बनते हैं अवतारचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-61364243157438267512010-08-27T18:22:16.809-07:002010-08-27T18:22:16.809-07:00सोच को एक बिसरी हुई राह की तरफ मोड़ने के लिए धन्यव...सोच को एक बिसरी हुई राह की तरफ मोड़ने के लिए धन्यवाद। अच्छी जानकारी वाली पोस्ट।Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-77333276640911468422010-08-18T20:36:23.186-07:002010-08-18T20:36:23.186-07:00baudhik khurak se bharpur. behtar.baudhik khurak se bharpur. behtar.arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-81213671528175105152010-08-17T03:04:21.987-07:002010-08-17T03:04:21.987-07:00काफी वैज्ञानिक ढंग से सोचा अवतारों के बारे में यह ...काफी वैज्ञानिक ढंग से सोचा अवतारों के बारे में यह विवेचन अनूठा है सहज ढंग से नही समझा जा सकता इस बारे मे ज्यादा खोज करे तो बहुत से तथ्य सामने आयेगे जो तुलना आपने की है वह भी अनूठी है।Sunita Sharma Khatrihttps://www.blogger.com/profile/10860643098392133673noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-33528580745708466032010-08-10T21:38:18.762-07:002010-08-10T21:38:18.762-07:00अवतारों की व्याख्या अनेक जनों ने अनेक तरह से की है...अवतारों की व्याख्या अनेक जनों ने अनेक तरह से की है. निस्संदेह पृथ्वी पर जीव के विकास क्रम के वैज्ञानिक सत्य को धर्म के आवरण में परोसा गे है. संख्या और नामों में अंतर प्रस्तुतकर्ता के मनोभावों और आस्था के अनुसार स्वाभाविक है. परशुराम के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता. वे राम के पूर्व ससे कृष्ण की बाद तक सक्रिय रहे. संभवतः यह पदनाम था 'शंकराचार्य' की तरह, व्यक्ति बदले किन्तु सोच, आचरण और नाम वही रहा. यह हर पंथ में होता है. परशुराम एक ओर सुरों के अत्याचार और राजन्य वर्ग की अहमन्यता के नाशक हैं तो दूसरी ओर नवीनता (राम) के परीक्षक और प्रमाणकर्ता भी हैं. वे पितृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था के समर्थक हैं चूंकि पिता के कहने पर माँ का हनन करते हैं. कालांतर में अवतारों के निर्धारण में महती भूमिका पुरोहित वर्ग की रही. जिसके भक्त अधिक दिखे उसे उस काल में अवतार घोषित कर पूजन-पाठ, यज्ञ-कथा कर पेट पालने का साधन बना लिया. सनातन वैदिक धर्म के विद्रोही बुद्ध को भी अवतार बना दिया किन्तु महावीर को नहीं बना सके क्योंकि श्रमण और वैदिक विभाजन की लकीर को जैनियों ने पाटने न दिया. जैन ग्रंथों ने हिंसा करने के लिये राम, कृष्ण, हनुमान को भी नहीं बख्शा और उन्हें नरक का पात्र बताया. 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' कहकर पुरोहित वर्ग ने बलि प्रथा का भी समर्थन किया. देवी के सामने पशु-पक्षी तो क्या नरबली तक दी जाती रही. अस्तु... पाने रोचक और ज्ञानवर्धक प्रसंग उठाया, साधुवाद...Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-5149134367435505022010-08-05T23:37:37.231-07:002010-08-05T23:37:37.231-07:00दिलचस्प! मुझे तो पता भी नहीं था इन अवतारों के बारे...दिलचस्प! मुझे तो पता भी नहीं था इन अवतारों के बारे में लेकिन हाल ही में वन्या के साथ बैठ कर दशावतार ( बच्चों की एक एनीमेशन फिल्म) देखी तो पता चला विष्णु जी के इस खेल का! :)दीपा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/12130328147834660274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-81726324442382313572010-08-03T00:52:19.788-07:002010-08-03T00:52:19.788-07:00आपका लेख बहुत ही विचारशील और ज्ञानवर्धक है परन्तु ...आपका लेख बहुत ही विचारशील और ज्ञानवर्धक है परन्तु ऐसे विचार हिन्दू-धर्मावलम्बियों को रोचक लग सकता है परन्तु प्रेरित नहीं करता विचार करने के लिए... क्योंकि हम धर्म और उसकी सारी धारणाओं को तर्क और बहस से परे मानते आये हैं... कुछ भी नया सोचना धर्म की आस्थाओं और मान्यताओं पे चोट करती है... जहाँ विचार होगा नयी सोच और समझ पैदा होगी... हम सामाजिक तौर-तरीको से कट्टर नहीं है परन्तु धर्म को कट्टरता ही समझते हैं किसी भी और धर्म की तरह...<br /><br />वैसे अब जरुरत है कि हम नयी सोच को धर्म कि व्याख्या के लिए उपयोग करें और नए विचारों पे विचार अवश्य करें... <br /><br />देखा जाये तो धर्म ही नहीं सामाजिक रीतियों का कुछ न कुछ कारण है जो उस युग के लिए अनुकूल था लेकिन उसे हम आज भी जब तक संभव हो पालन करते हैं...<br /><br />आपको बधाइयों के साथ...Neeraj Kumarhttps://www.blogger.com/profile/14312648658352009451noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-18411081650108852052010-07-27T18:46:12.074-07:002010-07-27T18:46:12.074-07:00interesting and instructiveinteresting and instructivenaveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-57140861917411825882010-07-27T18:44:49.399-07:002010-07-27T18:44:49.399-07:00interesting and ihstructiveinteresting and ihstructivenaveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-6237004576760819292010-07-26T09:22:37.593-07:002010-07-26T09:22:37.593-07:00मनुष्य का यह दिमाग कुछ भी सोच सकता है ।मनुष्य का यह दिमाग कुछ भी सोच सकता है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-45735613522913486262010-07-26T08:39:17.828-07:002010-07-26T08:39:17.828-07:00वैसे दिलचस्प क्रोनोलॉजी मजेदार लेख - उस जमाने में ...वैसे दिलचस्प क्रोनोलॉजी मजेदार लेख - उस जमाने में कहानियों (पुराण इत्यादि) में ऐसी ही कल्पना थी जो मिथक बनी - एक मतलब कि भैया धर्म का पालन करो अवतार आते ही होंगे कष्टों का निवारण करने यदि कष्ट हों तो - उन्हें न हमने देखा न आपने <br /><br />अमरत्व से ढूँढा <br />"अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः <br />कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीवितः "Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-38554971826910716332010-07-26T07:07:17.044-07:002010-07-26T07:07:17.044-07:00डार्विन ने लगता है यह विचार अवतारों से ही झाँपा हो...डार्विन ने लगता है यह विचार अवतारों से ही झाँपा हो।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com