tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post2954523241483824057..comments2023-11-02T04:01:12.182-07:00Comments on पहलू: ठलुएपन की ठसकचंद्रभूषणhttp://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-33168717580292992972007-08-08T06:57:00.000-07:002007-08-08T06:57:00.000-07:00प्रोफाइल कहॉं है भाईप्रोफाइल कहॉं है भाईहरिमोहन सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14190997410330717046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-38904453759797119942007-08-08T04:56:00.000-07:002007-08-08T04:56:00.000-07:00अनामदास जी, चेतन वाले प्रसंग पर आपका एतराज वाजिब ह...अनामदास जी, चेतन वाले प्रसंग पर आपका एतराज वाजिब है लेकिन इस घटना को जमाना गुजर चुका है, चेतन फिलहाल सुखी दांपत्त्य जीवन बिता रहे हैं और इसके लिए उन्हें अपने अतीत को लेकर किसी तरह की गोपनीयता नहीं बरतनी पड़ी है। उनका वह रिश्ता भी ईमानदार और साहसी था और यह रिश्ता भी ऐसा ही है- लिहाजा मेरे ऐसा लिखने में मित्रघात जैसी कोई बात नहीं है। बल्कि इसे भी आप ठलुएपने की एक ठसक की तरह ही ले सकते हैं...चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-16849706865946705482007-08-08T03:17:00.000-07:002007-08-08T03:17:00.000-07:00ठलुआपन एक अदभुत अवस्था है जिसका मर्म उससे बाहर निक...ठलुआपन एक अदभुत अवस्था है जिसका मर्म उससे बाहर निकलकर ही समझ में आता है. नौकरी की चक्की में पिस रहे आदमी के लिए ठलुआपन रोमैंटिक है, तो ठलुए के लिए तथाकथित व्यवस्थित जीवन एक सपना...आदमी जो नहीं है, वही होना चाहता है, कुछ अपवादों को छोड़कर.<BR/><BR/>निदा साहब ने सही कहा है<BR/>मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है<BR/><BR/>ठलुआपन भी खो जाने के बाद सोना हो जाती है, जीवन के सारे आनंद मिल जाने पर मिट्टी लगते हैं.<BR/><BR/>वैसे मेरी राय है कि दोस्तों के निजी जीवन (चेतन वाले) के प्रसंगों को इस तरह उनके नाम के साथ न छापें तो बेहतर रहेगा. इसका लाभ तो कोई नहीं है लेकिन नुक़सान ज़रूर हैं. कोई सच्ची आत्मकथा लिखने थोड़े ही न बैठे हैं आप.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/10451076231826044020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-7636091445895352242007-08-07T10:03:00.000-07:002007-08-07T10:03:00.000-07:00अधिकतर लोगों के मानस में ऐसे प्रश्न अक्सर उठते रहत...अधिकतर लोगों के मानस में ऐसे प्रश्न अक्सर उठते रहते हैं. आपने बहुत बहते हुए इसे शब्दों का जामा पहनाया है बड़ी खुबसूरती के साथ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-48714751019169051362007-08-07T09:52:00.000-07:002007-08-07T09:52:00.000-07:00सही कहते हैं आप ,अनिल रघुराज और प्रमोदजी भीसही कहते हैं आप ,अनिल रघुराज और प्रमोदजी भीअनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-19327302212907319272007-08-07T08:04:00.000-07:002007-08-07T08:04:00.000-07:00ठसक, दमक, बमक.. और थोड़ी ज़िद्दी किस्म की बेवकूफ...ठसक, दमक, बमक.. और थोड़ी ज़िद्दी किस्म की बेवकूफ़ी पास हो तो ठलुआते हुए जीना ऐसा मुश्किल काम नहीं! इन्हीं जीवनदायिनी तत्वों के सहारे ही तो आखिर मुल्क का नब्बे प्रतिशत जीवन खींच रहा है. नहीं?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5004531893346374759.post-11017607092885694642007-08-07T06:14:00.000-07:002007-08-07T06:14:00.000-07:00ठलुएपन की कसक को ठसक से ही ठेला जा सकता है। वरना य...ठलुएपन की कसक को ठसक से ही ठेला जा सकता है। वरना यह निरर्थता के ऐसे अहसास में डुबा देती है कि न जीते बनता है और न ही मरते...अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com