खारी बावली, धोबी तलाब, कांटा पुकुर
ये दिन भर भीड़ से भरे रहने वाले
कुछ सूखे शहरी इलाकों के नाम हैं,
जहां कभी पानी लहराता होगा।
पानी अब यहां बंबों में भी कम ही आता है
और पानी के अलावा कई दूसरी वजहें भी हैं,
मसलन इनका डाउनमार्केट नाम, जिसके चलते
यहां रहने वाले अब इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते।
वे अपमार्केट नामों वाली कॉलोनियों में रहते हैं
ग्रीन ह्याट, न्यूलैंड्स, वाटर वैली जैसे जिनके नाम हैं
हालांकि डाउनमार्केट नामों वाली जगहों पर
धंधा करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है।
कोई देसी जुबानों में इन नामों का अनुवाद करे
और इनकी असलियत का खयाल मन में लाए बगैर सोचे
तो बंद आंखों से शायद उसे घास पर ऊंघता कोई हुदहुद
या काई लगे पानी में ऊंचाई से डुबकी मारकर
झींगा पकड़ता कोई कौड़िन्ना दिखाई पड़े।
कैसी मजे की बात कि ग्रीनवैली मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स में
वेटलैंड्स कंजर्वेशन कंसॉर्शियम नाम के एक दफ्तर के
एक कारकुन ने एक शाम हिम्मत करके
अपने एक दोस्ताना सीनियर से पूछा-
सर, और सब तो ठीक है लेकिन
ये वेटलैंड्स साली चीज क्या है और पाई कहां जाती है।
गर्मियों की रात थी, नौ बजा चाहते थे
नियॉन लैंपों की पीली धुंध के बहुत ऊपर
सारसों की एक पांत कें-कें करती जा रही थी-
खुद को बचाने की इंसानी चिंताओं से अनजान
इस सामूहिक सोच में डूबी हुई कि
अगला बसेरा कहीं बुलडोजर पर ही न करना पड़े।
1 comment:
पुरानी जगहों को तोड़ कर नये लुभावने नाम दिये जा रहे हैं।
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