सब पूछ रहे थे मुझसे
इसमें ऐसा क्या है
ऐसा क्या है,
सोच-सोचकर जिसको
अबतक मेरी आंख छलकती है
कैसे मैं समझाता उनको
इतनी उलझी बात
कि जब-जब डूब रहा होता है
दिल अंधियारों में
अंधियारों में जब
दिल के उतने ही करीब
ठंडी खुशहाली की तस्वीरें
कभी सुनहरी कभी रुपहली
नाच रही होती हैं देने को सुकून
तब-तब मुझको बेचैन बनाती
पागल जैसा कर जाती
उन पीछे छूटी
धुंध भरी सी आंखों में
आजादी की इक नन्हीं सी
कंदील झलकती है
5 comments:
चंदू भाई, शानदार कविता है।
वाह चंदू भाई, बड़ी गहरी कविता रची है. छू गई. बधाई.
चद्रभूषण जी कविता बहुत ही सरल अर्थो को लिये हुए है अच्छा लगा आपकी भावाभिव्यक्ति को पढ़ कर।
बड़े ही सुंदर एवं सहज भाव
बहुत सुंदर भाव...जिनका बहुत अभाव है हिंदी में
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